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60 साल पुराना है माता का यह मंदिर, हर मनोकामना होती है पूरी; दूर दराज से मां दुर्गा के दरबार में आते हैं भक्त

60 साल पुराना है माता का यह मंदिर, हर मनोकामना होती है पूरी; दूर दराज से मां दुर्गा के दरबार में आते हैं भक्त

अकबरनगर बाजार स्तिथ मां दुर्गा मंदिर भक्तो के आस्था का केंद्र है। यहां हर साल माँ की प्रतिमा स्थापित कर पूजा अर्चना की जाती है। ऐसा माना जाता है कि मां के दरबार में जो भी भक्त सच्चे मन से आराधना करते है। माता उनकी हर मुराद पूरी करती है।

 

लोगो का कहना कि पहले यहां पूजा नही होती थी, लेकिन मन्नते पूरी होने आस्था के साथ यहां पूजा होने लगी। जिसके बाद पुजारी और लोगो के साथ मिलकर मां की प्रतिमा स्थापित की। बता दे कि अकबरनगर बाजार में मां दुर्गा की प्रतिमा सन 1952 से स्थापित की गई थी। तब से पूजा अब तक जारी है।

 

मंदिर में डलिया चढ़ाने की परंपरा

जिस समय प्रतिमा स्थापित की गई थी, उस समय मां दुर्गा की मंदिर का निर्माण नहीं किया जा सका था। जिसके बाद समाज के बुद्धिजीवी लोगों के अथक प्रयास से 1962 में मंदिर का निर्माण कराया गया था। लोगों का मानना था कि दुर्गा स्थान के मंदिर निर्माण में भक्त छेदी झा का काफी योगदान रहा था।

 

उसी के अथक प्रयास से मंदिर के नींव रखी जा सकी थी। इस मंदिर में साल में दो बार प्रतिमा स्थापित की जाती है। साथ ही श्रद्धालुओं के लिए आकर्षक ढंग से सीन तैयार कर दिखाया जाता है।

 

खासकर नवमी और दशमी को अकबरनगर में श्रद्धालुओं की काफी भीड़ लगती है। मां के दर्शन के लिए दूर दराज से भक्त आते हैं। मंदिर में डलिया चढ़ाने की परंपरा है।

 

आसपास कर लोगो ने चंदा इकट्ठा कर मंदिर बनाने का उठाया बीड़ा

अकबरनगर बाजार स्तिथ दुर्गा मन्दिर 70 साल पुराना हो गया था। जिससे भक्तो को छोटी जगहों में पूजा करने में परेशानी होती थी। मंदिर काफी पुराना होने के कारण आसपास के कई गांव के लोगो ने एक भव्य दुर्गा मंदिर बनाने का बीड़ा उठाया और नए मंदिर निर्माण की नींव रख दी।

 

जिसके एक साल बाद बुद्धिजीवियों के सहयोग से मंदिर निर्माण कार्य पूरा कर दिया। इस मंदिर बनाने की बीड़ा ने एक जुटता भाई चारे के एक मिशाल कायम किया है। साथ ही मंदिर बनने के बाद कोलकाता से संगमरमर की दुर्गा प्रतिमा स्थापित की गई।

 

यह सार्वजनिक दुर्गा मंदिर बेहतरीन डेकोरेशन के लिए जाना जाता है। लंबी दूरी तक रंग बिरंगे बल्व, आकर्षक पंडाल एवं जगह जगह तोरणद्वार बनाये जाते हैं।

 

एक पूजा से दसवीं पूजा तक संध्या समय दीप जलाने को लेकर खासकर महिलाओं की अपार भीड़ जुटती है। नवमी और दशमी को भव्य मेला लगता है। प्रतिमा निर्माण करने के लिए कल्याणपुर से मूर्तिकार बुलाए जाते है।

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